________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अचिन्य भिक्षार्थ गृहस्थके यहां जावे. 6 भ्रमर सामान साधु निदोष * आहार रूप केतकी के पप्प पर संतुष्ट रहे. और 7 भ्रमर समान साधु ग्रहस्थने अपने निमित बनाया आहार सभी को अदा की गय-मृग समान व होवे-१ मग समान साधु पाप रूप सिंह से रता है, 2 भृग समान ला प रूप सिंघ का रबर किया सदोष आहार नहीं भोगवे, 3 मृग समान साधु प्रतिवन्ध रूप सिंह से डरता एक स्थान नहीं रहे. 4 मृग समान साधु रोगादि उत्पन्न हुवे एक स्थान रहे. 5 मृग समान साधु रागादि उत्पन्न हुवे औषधी नहीं करे (यह उत्सर्ग पंथ) 6 मृग समान साधु रोगादि उत्पन्न हुवे स्व ननादि का शरण नहीं वांछे और 7 मग ममान साधु रोगादि कारण की निवृत्ति हुवे अप्रतिबन्ध बिहारी बने. [9. धरणि-पृथ्वी समान साधु होवे-१ पृथ्वी समान साधु गीत ताप छेदन भेदन मलादि सम भाव सहे. 2 पृथ्वी समान साधु संवेग वैराग्यादि धन धान्य कर प्रतिपूर्ण भरे हैं, 3 पृथ्वः समान साधु धर्म ज्ञान रूप बाजोत्पत्ति के कारणभत, 4 पृथ्वी समान साधु शरीर की संभार व ममत्व नहीं करे, 5 पृथ्वी समान साधु परिषह दाता की किसी पास पुकार नहीं करे, 6 पृथ्वी समान साधु क्लेश रूप कादव जो अन्य के संयोग से उत्पन्न हुवा. उस का नाश करे, और 7 पृथ्वी समान साधु सब प्राण भूत जीव सत्य को आधार भूत होवे // (10) जल रूख-कमल के सामान साधु होवे-१ कमल सामान साधु काम 16 रूप कादव भोग रूप पानी कर लिप्त नहाँ होवे, 2 कमल सामान साधु उपदेश रूप शीतल सुगंध कर अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक विजी *प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजा ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only