Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 362
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणउगदारे अणुगमिति तत्थ णिखित्ते इहणिखेत्ते भवइ, इहवा णिखित्ते तत्थ णिखित्ते भवइ, तम्हा इहं ननिखिप्पइ तहिं चेव निखिप्फइ से तं निक्खेवे // 17 // से किं तं अणुगमे ? अणुगमे दुविहे पणते तंजहा-सुत्ताणुगमेय, निज्जुति अणुगमेय // से किं तं निज्जित्ति अणुगमे ? निज्जुति अणुगमे तिविहे / ही अर्थ कहते लघुतापना होवे इस लिये इस के आगे तीसरा अनुयोगद्वार अनुगम इस नाम का तहाँ / अर्थ | निक्षेपा हुआ यहां निक्षेपा बोलना अथवा यहां निक्षेपा था जिस लिये निक्षेपा बोलना इस लिये या निक्षेपना नहीं. तहां ही सीसरा अनुयोगद्वार अनुगम को नक्षेपेंगे यह निक्षेप हुआ. // 17 // अहो, भगवन् ! अनुगम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अनुगम दो प्रकार का कहा है तद्यथा- सूत्र की है. व्याख्या करना सो सूत्रानुगम ओर 2 सूत्र के साथ लोली भूत भाव सम्बन्ध होवे उसे नियुक्ति कहीये उस नियुक्ति की युक्ति का प्रगट रस पने का कहना, नाम स्थापनादि प्रकार कर सूत्र को विभक्त कर सत्र की व्यार करना सो निर्यक्ति. अहो भगवन् ! नियुक्ति अनुगम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य : नियुक्ति *नुगम तीन प्रकार के कहे हैं तद्यथा-निक्षेप नियुक्ति अनुगम, उपोदघात नियुक्ति अनुगम और ३सूत्र फास नियुक्ति अनुगम. अहो भगवन् . निक्षेप नियुक्ति अनूगम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पहिले आवश्यक तथा सामायिकादि पद का नाम स्थापनादि चार निक्षेप द्वार कर व्याख्यान किये हैं वह त्तम-अनुयाद्वार सत्र चतु-र्थ मूल. 4888888 प्रमाण विषय 3g- 882 For Private and Personal Use Only

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