Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 346
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Im 280 84. अ एकत्रिंशत्तम अनुयोगद्वारसूत्र -चतुर्थ मूल जाणग सरीर भविय सरीर वइरित्त दवाए // से किं तं जाणग सरीर दवाए ? जागग सरीर दव्वाए आयपयत्थाहिगारे जाणयस्स जं सरीरयं वबगयचुत्त चविय चत्तदहं जहादवज्झयणे जाव से तं जाणग सरीर दवाए // से किं तं भविय सरीर दवाए ? भविय सरीर दवाए जे जोवे जोणीजम्मण निक्खते जहा दवज्झयगे से तं भविय सरीर दवाए॥से किं तं जाणग सरीर भविय सरीर वइरित दव्याए?जाणग सरीर दव्य सरीर बइरित्त दव्याए तिबिहे पण्णत्ते तंजहा-लोइए, कुप्पावणिए, आय के तीन प्रकार किये हैं तद्यथा-१ ज्ञेय शरीर द्रव्य आय, 2 भव्य शरीर द्रब्य आए. औ ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त शरीर द्रव्य आय. अहो भगवन् ! ज्ञेय शरीर द्रव्य आय किसे कहते अहो शिष्य ! आय इस पद का अर्थ अधिकार का जान था उस का शरीर जीव प्राण रहित पहा है। इत्यादि सब द्रव्य अध्ययन जैसा कहना यावत् यह भव्य शरीर द्रव्य आय युवा. अहोगवन् ! ज्ञेय और भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आय किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! तीन प्रकार से कहा है तद्यथा-१ लांकिक, 2 कपावनिक और 3 लोगोदर. अहो भगवन ! लौकिक किसे कहते हैं ? अहो (c) शिष्य ! तीन प्रकार को है सपथा-सचित्त लाभ, 2 अचित्त लाभ, और 3 मिश्र लाभ. अहो भगवन् ! सचित्त लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! सचित्त लाभ तीन प्रकार कहे हैं तवथा-१ 88- प्रमाण का विषय 1 80- 80 For Private and Personal Use Only

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