________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 एकत्रिशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल 82 दवझवणा // से किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वइरित्ता दव्वझवणा ? जाणगसरीर भवियसरीर वइरित्त दव्यज्झवणा जहा जाणगसरीर भवियसरीर वइरित्त दव्वझवणा भणिया तहा भाणियव्या, से तं जाणग. भवियसरीर वइरित्ता दव्वज्झवणा // से तं नो आगमओ दवझवणा ! से तं दव्वझवणा // से किं तं भावझवणा ? भावझवणा ! दुविहा पण्णता तंजहा-आगमओ नो आगमओ // से किं तं आगमओ भाव ज्झवणा! आगमओ भाव ज्झवणा जाणए उवउत्ते से तं आगमो भाव झवणा // से किं तं नो आगमो भाव ज्झवणा ? नो आगमो भगवन् ! भाव झवणा किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव झवणा के दो भेद-१ आगम से और 2 नो आगम से. अहो भगवन् ! आगम से भाव झवणा किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! आगम से भाव झवणा सो झवणा इस सूत्र का जान उपयोग युक्त पढे सो आगम से भाव झवणा. अहो भगवन् ! 4नो आगम से भाव झवणा किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! नो आगय से भाव झवणा के दो प्रकार कहे हैं, तद्यथा-१ प्रशस्त और 2 अप्रशस्त, अहो भगवन् ! प्रशस्त किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! प्रशस्त के चार प्रकार कहे हैं तया-१ केध का क्षय करे, 2 मान का क्षय करे, 3 माया का क्षय 1882 प्रमाण का विषय 4894800 - 4.98 For Private and Personal Use Only