________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 20- लोभाए से तं अपसत्थे // से तं आगमतो भावाए // से तं भावाए // सं ते आए // 14 // से किं तं ज्झवणा ? उझवणा चउन्विहा पण्णत्ता तंजहा-नाम ज्झवाणा, ठवणा झवणा, दव्य ज्झवणा, भाव उझवणा, ना ठवणा पुव भणिता // ले किं तं दव्य ज्झवणा ? दब ज्झवणा दुविहा पणत्ता तंजहा-आगमाय नो / आगमोय // से किं तं आगमोय? आगमोय ! जस्सणं ज्झयणाइत्ति पदं सिखियं ठियं जियं मियं परिजियं ाव से तं आगमतो दव्य ज्झवणा // से किं तं नो आगमतः एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ अर्थ लोभ का लाभ. यह नो आगम से भाव लाभ हुवा. भाव लाभ और लाभ का कथन हुषा // 14 // अहो एभगवन् ! झवणा [ क्षय करना] किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! झवणा चार प्रकार की कही है। तद्यथा-१ आगम से और 2 नो आगम से. अहो भगवन् ! मागम से द्रव्य अवणा किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! आगम से द्रव्य झवणा सो 'झवणा ' ऐसा पद पढा हृदय में स्थापन किया, अजित किया, अक्षरों की संख्या सहित धारण किया आद्यन्त पठन किया यावत् आगम से द्रव्य झवणा कही. अहो भगवन् ! नो आगम से द्रव्य झवणा किसे कहते हैं? अहो शिष्य! नो आगय से रव्य झवणा के तीन प्रकार कहे हैं तवया-ज्ञेग शररि द्रव्य झवणा, 2 भव्य शरीर द्रश्य झवणा, अरि 3 जय भव्यम्पतिरिक्त 20 प्रमाण का विषय 1180 * For Private and Personal Use Only