Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 349
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी मीसए // से तं लोगुत्तरिए // से तं माणग सरीर भविय सरीर बइरित्त दवाए // से तं णो आगमो दवाए // से किं तं भावाए ? भावाए ! दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमअय, नो आगमओय // से किं तं आगमतो भावाए ? आगमतो भावाए ! जाणए उवउत्त से तं आगमतो भावाए॥से किं तं नो आगमता भावाए ? नो आगमतो भावाए दुविहे पण्णत्ते तंजहा-पसत्थे, अप्पसत्थे // से किं तं पसत्थे ? पसत्थे तिविहे पण्णत्ते तंअहा-णागए, दसणए. चरित्तए, से तं पसत्थे // से किं तं अपसत्थे ? अपसत्थे चउबिहे पण्णत्ते तंजहा-कोहाए माणाए मायाए का कहा है.तद्यथा-१ आगम से और 2 नो आगम से. अहो भगवन् ! आगम से भाव लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जो जीव जानकार हो उपयोग युक्त सूत्र पढे, यह आगम से भाव लाभ हुवा. अहे. है भगवन् ! नो आगम से भाव लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! नो आगम से भाव लाभके दो प्रकार कहे हैं तद्यथा-१ प्रशस्त ( अच्छा ) भौर 2 अप्रशस्त (बुरा). अहो भगवन् ! प्रशस्त लाम किसे इते हैं ? अहो शिष्य ! प्रशस्त लाभ ती प्रकार का कहा हैं. द्यथा..., ज्ञान का लाभ, 2 दर्शन का लाभ, और 3 चारित्र का लाभ. यह प्रशस्त हुधा. अहो भगवन् ! अप्रशस्त किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अपशस्त के चार प्रकार कहे हैं. तद्यथा-, क्रोध का, 2 मान का, 3 माया का और प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * For Private and Personal Use Only

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