Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 348
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir + से किं तं कुप्पावयणीए ? कुप्पावयणीए ! तिविहे पण्णत्ते तंजहा--सचित्ते, अचित्ते, मीसाय. निणिवि जहा लोहए // जाव से तं मिसए // से तं कप्यावणिए // से किं तं लोगुत्तरिए ? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते तंजहा-संचित्ते अचित्ते मिसए / से किं तं सचित्ते ? सचित्ते ! सीसाणं सीसणीणं आए से तं सचित्ते // से किं तं अचित्ते ? अचित्ते पडिगाहाणं वत्थाणं कंबलाणं पायपुच्छणाणं आए से तं अचित्ते // से किं तं मीसए ? मीसए सीसाणं सीस्सणीणं सभंडोवगरणाण आए से तं। 48488 357 अर्थ एकात्रिंशसम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ द्रव्यलाभ किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! लोकोत्तर द्रव्य लाभ तीन प्रकार कहे हैं तद्यथा-सचित्त अचित्त और मिश्र.अहो भगवन :सचित्त लाभ किसे कहते हैं ? अहोशिष्य ! सचित्त सोशिष्य शिष्यगी का लाभ होवे सो. #अहो भगवनू ! अचित्त लाभ किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! अचित्त पात्र वस्त्र कम्बल रजोहरण प्रमुख निर्दोष वस्तु साधु को मिले सो यह अचित्त हुआ.अहो भगवर ! मिश्र लाभ किसे कहते है ? अहो शिष्य ! शिष्य शिष्यनी का भंडोपकरणादि सहित लाभ होवे सो. यह मिश्र लाभ और लोकोत्तर लाभ हवा 4 और ज्ञेय भव्य शरीर व्यतिरित्त द्रव्य लाभ हुवा और नो आगम से द्रव्य भी हुवा. अहो भगवन् ! भाव लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव लाभ के दो प्रकार कहे हैं तद्यथा-आग से और२ नो भागम से. अहो भगवन ! आगम से भाव लाभ किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! आगम से भाव लाभ दो: प्रकार प्रमाण का विषय 9.38-4th For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373