Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 354
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र 4. 3 दव्व सामाइए, भावं सामाइए // नाम ठवणाओपुन्य भणियाओ // दव्य सामाइएवि तहेव जाव से तं भविय सरीर दव्व सामाइए // से किं तं जाणग सरीर भविष सरीर वइरिचे दव्व सामाइए ? जाणग सरीर भविय सरीर वइरित्ते दव्व सामाइए पत्तय पोत्थय लिहिय से तं जाणय सरीर वइरित्त दव्व सामाइए // से तं नो आगमउ दव्य सामाइए // से तं दव्व सामाइए ॥से किं तं भाव सामाइए? भाव सामाइए दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमोय नो आगमोय // से किं तं आगमोय 438 882 एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थ मूल 488+ प्रमाण विषय अर्थ 4 भाव सामायिक. इस में से नाम सामायिक और स्थापना सामायिक का कथन तो जैसा आवश्यक का कहा तैसा ही कहना. और द्रव्य सामायिक तैसे ही द्रव्य आवश्यकवत् विना उपयोग से करे सो जानना. यह भव्य शरीर द्रव्य सामयिक हुई. अहो भगवन् ! झेय शरीर और भव्य शरीर ब्यति-80 रिक्त द्रव्य सामायिक किसे कहना ? अहो शिष्य ! ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त द्रव्य सामायिक सो पत्र (पाने ) पुस्तको सामायिक की पुस्तको लिखी स्रो. यह ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त सामायिक हुई. ॐ आगम से भी द्रव्य सामायिक हुई और द्रव्य सामायिक भी हुई. अहो भगवन् ! भाव सामायिक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव सामायिक दो प्रकार की कही हैं सद्यथा-आगम से और नो / For Private and Personal Use Only

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