Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 351
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दव्य झवणा ? नो आगमतो दव्व उझवणा तिविहा पणत्ता तंजहा-जणग सरीर दव्यज्झवणा, भविय दव्य ज्झवणा, जाणग भविय सरीर वइरित्ता दव उझवणा // किं तं जाणग सरीर दव्यज्झवणा?जाणा सरीर दव्व ज्झवण! ज्झवणा पदथाहिगार जाणगरस जं सरीरगं धवगत चुतचवित चत्तदेहं सेसं जहा नवाया जान से तं जाणगसरीर दव्वझवणे // से किं तं भवियसरीर दवझवणे ? भाग्यालरीर दव्यज्झवणे-जे जीव जोणि जम्मण निक्खंते से संजहा दव्यज्झयणे जाव से तं भवियसरीर अनुवादक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋषिजी प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापसा द जी अर्थ शरीर द्रव्य झवणा. अहो भावन् ! ज्ञेय शरीर द्रब्य झवणा किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! ज्ञेय शरीर द्रब्य झवणा सो झवणा ऐसा पद का अर्थ अधिकार जाननेवाले का शरीर प्राण रहित पडा न शेष द्रव्याध्ययन जैसा कहना. यह शेय शरीर द्रव्य झवणा हुई, अहो भगवन् ! भव्य शरीर द्रव्य : झवणा किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जो जीव योनी से जन्म हो बाहिर निकला शेष द्रव्याध्ययन जैसा कहना यावत् यह भव्य शरीर द्रव्य झवणा हुई. अहो भगवन् ! ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त द्रव्य झवणा क किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जैसे ज्ञेय भव्य ब्यतिरिक्त शरीर द्रव्य लाभ कहा तैसा री कहना. यह ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त शरीर द्रव्य झवणा हुवा. यह नो आगम से द्रव्य झवणा का कथन पूर्ण हवा. अहो। For Private and Personal Use Only

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