Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 338
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48 9802 त्तम-अनुयागद्वार मात्र चतु-र्थ मूल भावज्झयणे, नामठवणाओ पुव्यवग्णियाओ // 3 // से किं तं दव्यज्झयणे ? दब्यज्झयणे दुविहे पप्णते तंजहा-आगमओ, नो आगमओ // 4 // से किं तं आगमओय दवज्झयणे ? आगमओ दव्यज्झयणं जस्सणं अज्झयणति पदंसिक्खित्तं जितं मितं परिजितं जाव एवं जावइया अणवउत्ता आगमतो तारमा दव्यज्झयणा // एवमेवववहारस्सवि // संगहस्सणं एगोवा अर जाव से तं आगमतो दव्यज्झयणे // 5 // से किं तं नो आगमती दव्वज्झयणे ? नो आगमतो दव्वज्झयणे तिविहे पण्गत्ते तंजहा-जाणगसरीर अध्ययन, और 4 भाव अध्ययन. नाम और स्थापना का तो पहिले आवश्यक में कहा तैसा कहना. // 3 // अहो भगवन् ! द्रव्य अध्ययन किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! द्रव्य अध्ययन के दो भेद कहे हैं तद्यथा-१ भागम से और 2 नो आगम से // 4 // अहो भगवन् ! आगम से द्रव्य अध्ययन किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! जिप्त अध्ययन का पद पढा हृदय में जना, परमित हुवा विशेष धारा यावत् इस प्रकार उपयोग विना किया हुवा आगम द्रव्य अध्ययन यह नैगम नय आश्रिय जानना. ऐसा ही व्यव*हार नय आश्रिय कहना. संग्रह नय से, एक अथवा अनेक आवश्यक करे सो. यावत् यह आगम से द्रव्य अध्ययन हवा // 5 // अहो भगवन ! आगम से द्रव्य अध्ययन किसे कहते हैं? अहो शिष्य !' अर्थ प्रमाण विषय 4848 For Private and Personal Use Only

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