Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 342
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वचा दव्यज्झिणे? दयाज्झिणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमोय णो आगमीय // से कि तं आगमतोय दव्वझीणे ? आगमतो दवझीणे जस्सणं अज्झणिोत्तपदं सिक्खित्तं ठियंजितं मितं परिजितं जाव से तं आगमतो दव्वझीणे // से किं तं नो आगमतो दव्यज्झीणे ? नो आगमतो दव्यज्झीणे तिविह पण्णत्ते तंजहा. जाणगसरीर दव्यज्झीणे, भवियसरीर दव्वझीणे, जाणगसरीर भवियसरीर वतिरित्त दव्यज्झीणे // से किं तं जाणगसरीर दव्वझीणे ? जाणगसरीर दबझीणे अज्झीण एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मू-११ 40406.2 प्रमाणका विषय 11 द्रव्य अक्षीण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! द्रव्य अक्षीण दो प्रकार कहा है. तद्यथा-१ आगम से और 2 नो आगम से. अहो भगवन् ! आगम से द्रव्य अक्षीप किसे कहने अहो शिष्य ! आगम से द्रव्य अक्षीण जिसने अक्षीण ऐसा पद बढा हृदय में किया अक्षरों के प्रमाण से पढा. विशेष पहा यावत् उसे आगम से द्रव्य अक्षीण कहना नो आगम से द्रव्य अक्षीण किसे कहते हैं? नो पागम से द्रव्य अक्षीण के तीन प्रकार किये हैं तद्यथा१. ज्ञेय शरीर द्रव्य सीण, 2 भव्य शरीर द्रव्य क्षीण, और 3 ज्ञेय भन्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य श्रीग.3 अहो मनवन् ! शेव शरीर द्रव्य श्रीण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अभीण पद का अर्थ अधिकार 5 For Private and Personal Use Only

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