________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मडा Hot . 44808 349 भावेणं अज्झयणेत्तिपयं सेयकाले सिक्खिस्संति न तावसिक्वंति जहा को दिटुंतो अयं महकमे भविस्संति, अयं घयकों भविस्संति से तं भवियमरीर दवज्झयणं // 8 // से किं तं जाणगसरीर भवियसरीर वइरित्ते दव्वज्झयणे ? जाणयसरीर भवियसरीर वइरिते दव्यज्झयणे पत्तय पोत्थय लिहियं / से तं जाणगसरीर भवियसरीर वहरित दव्यज्झयणे ! से तं नो आगमतो दव्वझयणे // से तं दबझयणे // 9 // से किं तं भावज्झयणे ? भावज्झयणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-आगमतोय, णो आगमतोय // 10 // से किं जन्म हुवा [श्रावक के घर पुत्र हवा ] उसे देख कर कहे यह जीव जिनेन्द्र प्रणित भाव को आगमिक काल में पढेगा. अथवा नहीं पड़ेगा, यथा दृष्टांत यह घृत का तथा मधु का घडा होगा. यह भव्य शरीर द्रव्य अध्ययन हुवा. // 8 // अहो भगवन् ! ज्ञेय और भव्य शरीर से व्यातिरिक्त द्रव्य अध्ययन किसे कहना ? अहो शिष्य ! पत्र [ पाने ] पुस्तक लिखे हुवे वे ज्ञेय और भव्य शरीर से न्यतिरिक्त द्रव्य अध्ययन जानना. यह नो आगम से द्रव्य अध्ययन हुवा और द्रव्य अध्ययन का भी कधन दुवा // 9 // अहो भगवन् ! भाव किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव अध्ययन दो प्रकार कहे हैं, तद्यथा-१ आगम से और नो आगम से. // 10 // अो भगवन् ! आगम से भाव अध्ययन कि अर्थ * एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्यमुल प्रमाण का विषय 4848 For Private and Personal Use Only