________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पयत्थाहिगार जाणयस्स जं सरीरयं ववगय चुतचवित चत्तदेहं जहा दबज्झयणे तहा भाणियन्वा, जाव से तं जाणगसरीर दव्वझीणे // से किं तं भवियसरीर दव्यज्झीणे ? भवियसरीर दव्यज्झीणे जे जीवे जोणि जम्मणनिक्खंते जहा दवज्झयणे जाव से तं भवियसरीर दव्बझीणे / से किं तं जाणग सरीर भवियसरीर वइरित दव्वझीणे ? जाणगसरीर भवियसरीर वइरित्त दव्वज्झीणे सव्वागाससेढी से तं जाणगसरीर भवियसरीर वरित दव्यज्झीणे // मे तं नो १.अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजी का जान जो शरीर उस में से जीव निकल गया इत्यादि जैसे द्रव्य अध्ययन का कहा तैसा अक्षीण का भी कहना. यावत् यह ज्ञेय शरीर द्रव्य अध्ययन हुवा. अहो भगवन् ! भव्य शरीर द्रव्य अक्षीण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जो जीव योनी से बाहिर निकला जन्म लिया इत्यादि द्रव्य अध्ययन के जैसा कहना यावत् यह भव्य शरीर द्रव्य अक्षीण हुवा. अहो भगवन् ! ज्ञेय भव्य व्यतिरिक्त द्रव्य क्षीण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! सर्व लोक अलोक की अनंत आकाश की श्रेणि उस में का समय 2 एकेक आकाश प्रदेश अपहरण करते भी खुटे नहीं. इस लिये अक्षीण. यह ज्ञेय शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य क्षीण. और नो आगम से द्रव्य क्षीण हुवा और द्रव्य क्षीण भी समाप्त हुआ अहो भगवन् ! भाव क्षीण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! भाव क्षीण दो प्रकार कहा है नद्यथा For Private and Personal Use Only