Book Title: Anuyogdwar Sutram
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र अर्थ अनुवादक बालजमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी से किं तं निक्खेवे ? मिक्खेवे तिविहे पण्णत्ते तंजहा-ओहनिप्फन्ने नामनिप्फन्ने सुत्तलागवनिप्फन्ने // 1 // से किं तं ओहनिप्फन्ने ? ओहनिप्फन्ने चउबिहे पण्णन्ते तंजहा-अज्झयणे, अज्झीणे, आए, झवणा // 2 // से किं तं अज्झयणे ? अझयणे चउविहे पत्ते तंजहा- नामज्झयणे, ठवणाझयणे, दबझयणे, अहो शिप्य ! निक्षेप तीन प्रकार के कहे हैं. तद्यथा--, औषनिष्पन्न, 2 नाम निष्पन्न. और 3 मूत्री व्यापक निष्पन्न // 1 // अहो भगवन् ! औषनिष्पन्न कसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! सामान्य समुच्चय अध्यायन यों निष्पन हुवा नाम वह साभायिकादिक अध्ययन नाम लेकर विशेष कहना उस कर जो निष्पन्न हुवा. सूत्र-सामायिक अध्ययन नाम कहे उस का आलापक. करोमि भंते' यों सूत्र कहकर उस पे निष्पना व सभापक निष्पन्न रहना. अर्थत् औषनिष्पन्न में समुच्चय 6 अध्ययन जानने. जाममि में समापिदिछ अध्ययन कहना. सत्र.लापक में छ अध्ययन में अलग 2 पाठ मूत्र ना. 31 में छठा आरहबर का उपवर्मन् आउ छ ही आ करने योग्य इस लिये निश्चय से छ अध्ययन प्रती देन अध्ययन के सूत्र पाठ शुद्ध वर्तते हैं, तद्यथा-१ अध्ययन करने (पढने) योग्य सो अध्ययन, 2 शिष्यादि को पहाते सूत्र ज्ञान क्षीण न होवे इस लिये अक्षीण, 3 लाभ के दाता इस ललिये आय, 4 कर्म को क्षय करे इस लिये झवण // 2 // अहो भगवन् ! अध्ययन किसे कहते हैं। अहो शिष्य ! अध्ययन चार प्रकार के कहे हैं तद्यथा-१ नाम अध्ययन, 2 स्थापना अध्ययन, 3 द्रव्य कमकाधक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी * For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373