________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स 327 अफुन्ना एसणं एवइए खेत्तेपल्ले आइठे पढमासलागा एवइयाणं सलागाणं असंलप्पालोगा भरित्ता तहाविउकोसयं संखजयं न पावति, जहा को दिदतो ? से जहा नामा मंचमिया, आमलगाणं भरिए तत्थ एगे आमलए पक्खित्ते सेवि माते अन्नेबि पक्षिसे सेवि माते, एवं परिख पमाणेणं / दाहिसेवि आमलए अभि खित्ते से मंचए भरिजइ.तत्थ आमलए नमाइहिंइ एवमेव उकोलए संखेजए रूवेपखित्ते, जहन्नयं परित्ता संखेज होइ, तेणंपरं अजहन्नमणुकोसयाइत्ताणाई जाव उक्कोसयं परित्ता संखेजयं ण पावति 2 उक्कोसयं परित्ता संखेजयं कित्तिय होइ जहन्नयं परित्ता एकत्रिंशत्तम-अनुयागेद्वारसूत्र-चतुर्थ मुस बड़ा उस द्वीप तथा समुद्र के प्रमाण में उस पाले को बनावे यह प्रथम सलाका. इन सलाकों को बिना गिनति के दाने से भरे तो भी उत्कृष्ट संसान होवे नहीं. प्रश्न किस दृष्टान्त से? सो कि-यथा दृष्टान्त कर मंच पाला होवे, उसे आश्ले कर पूरा भरे उस पर एक आमला रखे तो वह भी गिरजाय दूसरा प्रक्षेपा वह भी समा गया. यों प्रक्षेपी * जो आमळे प्रक्षेपे उस कर माचा भरावे फिर उस में आमला नहीं पाये. इस प्रकार सब सिलाके के पाले में सरसध मरे फिर सब पाळे के सरसव के दाने गिने वह उत्कृष्ट संख्याते हो. उस में से एक या दो दाने का करे बाकी दाने रहे सोसव मध्यम संख्याते, और उस उत्कृष्ट संख्याते के ऊपर एक दाना पत्रेप करे वह जघन्य परिता असंख्याता होवे. - For Private and Personal Use Only