________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वारसूत्र -चतुर्य मूल <2882 जे इमे जीवा संखागइनामगोत्ताई कम्माई वेदंति, से तं भावसंखा // सेतं संखप. माणे // सेतंप्रमाणे पमाणेत्तिग्य सम्मत्तं // 1.1 // * // से किं तं वत्तध्वया? वत्तब्धया तिविहापण्णतः तंजहा-ससमय वत्तव्यया,परसमय व तवया.ससमय परसमय वत्तव्यया 1 से किं तं ससमयवत्तव्यया? ससमय वत्तवया जत्थणं ससमय अधिक उत्कृष्ट परिता अनंता से 1 कम सो (2) मध्यम परिता अनंता उत्कृष्ट परिता अनता में का निकाला हुवा दाना पीछा उस में डाल दे वह (4) जघन्य युक्ता अनंता, जघन्य युक्ता की राशी को राश गुनाकर उस में से एक दाना निकाल लेवे सो (6) उत्कृष्ट युक्ता अनंता. जघन्य युक्ता अनंता से एक अधिक उत्कृष्ट युक्ता अनंता से एक कम वह (५)मध्यम युक्ता अनंता उस में वह दाना डाल दे। है वह (7) जघन्य अनंतानंत. जघन्य युक्ता अनंताअनंत की राशी को राश गुना करने से जो राशी होवे वह (8) मध्यम अनलानत है यह गणना संख्या का कथन हवा / / 103 // अहो अगवन् ! भाव संख्या प्रमाण किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! जो प्रत्यक्ष शंख नाम का जीव घेइन्द्रिय गति नाम कर्मके उदय कर कर्म को वेदता है वह भव संख्या प्रमाण. यह शंख प्रमाण और प्रमाण हवा, यह प्रमाण पद संर्ण हुवा // 104 * // अहो भावन् ! बक्तव्यता किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! वक्तव्यता के तीन भेद कहे हैं. तद्यथा-स्व समय की वक्तव्यता, 2 पर समय की वक्तव्यता, 3. स्व समय पर समय दोनों की वक्तव्यता // // इस में से स्वसमय की वक्तव्यता उसे कहते हैं जो स्व मत जिन प्रणित, 13.48 प्रयाण का विषय 11 2. For Private and Personal Use Only