________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मी वा ब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * टोपले में के सब दानों का ढग कर उस में से एक दाना निकाला था वह पीछा डालदे वह 1 नपन्य परिता असंख्यात,२और इस जघन्य परिता असंख्याते को रामन को म दाना निकाले वह (3) उत्कृष्ट परिता असंख्याता और जघन्य पारिता से अधिक रिता र स्याता से पक कम मध्यम परिता असंख्याता कहना. फि. परिता असंतयात की राशी में से निकाला हुआ दाना पीछा उस राशी में डाल दे यह (4) जपन्य समस्यात. इतने एक वलीका के समय होते हैं फिर इस जयन्य युक्ता डीसी को मन स दाना कम करे वह (6) उत्कृष्ट युक्ता असंख्याता, और जघन्य युक्ता असंख्यात से एक अधिक उत्कृष्ट युक्ता असंख्यात से एक कम वह (5) मध्यम युक्ता असंख्याता. (7) फिर उत्कृष्ट युक्ता की राशी मे से निकाला हुआ दाना उस में डाल दे सो जघन्य अपरात असंख्याता. और इस जघन्य असंख्यात 2 राशी को र रास गुना कर एक दाना कम करे वर (9) उलष्ट असख्यात असंख्याता इतने धर्मास्ति अधर्मास्ति जीव स्ति और लोकालाशालिके मदेश, समय अख्यात संस्थाह से एक ज्यादा उत्कृष्ट असंख्यात असख्यात में एक की मम्बर त अस्पाता यह 9 भेद असंख्यात के हुआ. अब अनंत के 8 भेद कहते - असंख्यात 2 बीशी में से निकाला हुआ दाना पीछा उस में डाल दे वह (1) जघन्य परिता अनन्ता, इस जघन्य परितापी राशी को राश: गुन। करे उस में से एक दाना निकाल ले वह (3) उत्कृष्ट परिता अमन्ता, जघन्य परिता अनन्ता से एक प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालासादी. For Private and Personal Use Only