Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir T गुणया अन्नमन्नब्भासो पडिपुन्नो जहन्नयं अणताणतयं होइ, अहवा उक्कोसए जत्तागंतए रूवंपखित्तं जहन्नयं अणंता अगंतयं होइ, तेणं परं अजहन्नमणु कोसयाई ठाणाई // से तं गणणासंखा // 1.3 // से किं तं भावसंखा ? भावसखा अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्रीनमोलक औपज . की राशी से गुना करे परस्पर गुना करने से प्रतिपूर्ण हा होवे वह सातवा जघन्य अनन्तानन्त होवे, अथवा उत्कृष्ट युक्ता अनंत में एक रूप प्रक्षेपे दह भी जघन्य अनन्तानन्न होवे, उस उपरांत सब आठवा (मध्यप) अनंतानंत का स्थानक जानना. यह जितनी संख्या कही. इस संख्या मान से ग्रंथातर इस प्रकार कथन है-१ भनवस्थित, 2 शलाका, 3 प्रतिशला का, और४ महां शलाका इन चारों नाम के चार टोपले जंबद्वीप प्रमाने एक लक्ष योनन के लम्बे चौडे (गोल) और आठ योजन के है. इन चारों टोपले में से पहिले अमवास्थित टोपले में सरसों के दाने शिखाउन भरे. फिर कोई देवता एक तो दाने से भरा हुवा और जीन टोपले विना भरे जठावे. उस भरे टोपले में से एकदाना जम्बूद्वीप में एक दाना लवण समुद्र यों अनुक्रम से रखता हुवा जावे जब उस अनवस्थित टं पले में एक ही दाना रजावे तब उसे दूसरे शलाका नामक टोपले में रख जिस द्वीप . सपा में यह टोपला खाली हुदाथा. उस दीप व समद प्रमाने उस अनवस्थित टोप को बनाये फिर उसे दानों। शिधारभरे. फिर उस में से एक श्वाना द्वीपसमुद्र में डालतें जो एक दाना रहा जावे जब यह दाना भी शला प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायज मालामादजा * - For Private and Personal Use Only

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