________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 488+ एकोत्रिपक्षम-अनुयोगद्वार मूत्र चतुर्व पूल ध्वयंहग्छति तत्थ-णेगम संगह ववहारो तिविहं वत्तव्वयं इच्छीत तंजहा-ससमय वत्तस्वयं, परसमय वत्तव्वयं, ससमय पर समय वत्तव्वयं उज्जुसुउ दुविहं वत्तवयं इच्छद संजहा ससमय वत्तब्वयं,परसमयवत्तब्वयं,तस्थणं जासा ससमय वत्तध्वया सासमयंपरिट्ठा जा सापासमय बत्तव्वया सा परसमय परिठा, तम्हा दुविहावत्तव्वया, मस्थितिविहा वत्तव्वया, तिणिसहाणया एगसममय वत्तव्वयं इच्छंति,नत्थि परसमयवत्तव्यया. कम्हा! जम्हा परसमए अणटे अहेउ असम्भावे अकिरिए उमग्गो अगुवएसे मिन्छासण // 2 // अब आगे नय का कथन कहते हैं यहां कौनसी नय कौनसी वक्तव्यता को मानती है सो कहते हैं-१ तहाँ नेगम नय, 2 संग्रहनय, 3 व्यवहार नय, यह तीनों वस्तु वक्तव्यता माने वथा- ससमय वक्तव्यता, 2 पर समय वक्तव्यता. 3 ससमय पर समय वक्तव्यता, ऋजुमूत्र नय दो प्रकार की वक्तव्यता माने ससमय और पर समय परन्तु दोनों की मिश्र धक्तम्यता नहीं माने. इस में जो ससमय की वक्तव्यता है वह स्व समय में स्थापन करे* और पर समय की वक्तव्यता वह पर समय में समावे. इस लिये दो प्रकार की बक्तव्यता ही है परंतु तीन प्रकार की नहीं है. ऊपर की तीनों शब्द नयवाले एक स्वतःके समय की वक्तव्यता को इष्टते हैं। परंतु पर समय की बक्तव्यता इच्छते नहीं है. क्यों कि जो पर समय है वह अनर्थ है अहेतु है, अस 14+484 माण विषय 48488 - For Private and Personal Use Only