Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 316
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 484880% अजहन्नमणुकोसए // से कि तं असंखेज्जए 2 तिविहे पण्णत्ते तंजहा-जहन्नए, उक्कोसए, अजहन्नमणुकोसए // से किं तं अणंतए ? अणंतए तिविहे पण्णत्ते तंजहा-परिताणंतए, जुत्ताणतए, अणंताणतए // से किं तं परित्ताणतए ? परितागंतए, तिविहे पण्णत्ते तंजहा-जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुक्कोसए // से किं तं जुत्ताणतए ? जुत्ताणंतए तिविहे पण्णत्ते तंजहा-जहन्नए उक्कोसए अजहन्नमणुकोसए // से किं तं अणंताअणंतए ? अणंताअणंतए दुविहा पण्णत्ता तंजहा-- जहन्नएय' अजहन्नमणुकोसए // 102 // जहन्नयं संखेजइ कित्तियं होइ, दो रूवयं 488 एकोनत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थमूल प्रमाण का विषय अर्थ तद्यथा-१ परिता अनंता, 2 युक्ता अनंता, 3 अनन्ता अनन्ता. अहो भगवन् ! परिता अनन्ता किमे कहते हैं ? परिता अनंता तीन प्रकार के कहते हैं तद्यथा-१ जघन्य परिता अनंता, 2 मध्यम परिता . अनंता, 3 उत्कृष्ट परिता अनंता. अहो भगवन् ! यक्ता अनंता किसे कहते हैं? अहो शिष्य / / युक्ता अनंता तीन प्रकार के कहे हैं ? तद्यथा-जघन्य युक्ता अनंता 2 उत्कृष्ट युक्ता अनंता, 3 अजघन्यो / स्कृष्ट युक्ता अनंता. अहो भागबन्। अनंतानन्त किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! अनंता अनंा दो प्रकार के कहे हैं, तद्यथा-जघन्य अनंतानंत, और अजयन्योत्कृष्ट अनंतानंत / / 102 // जघन्य संख्याते कितने होते 4.8 + For Private and Personal Use Only

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