Book Title: Anuyogdwar Sutram
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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 328 संदेजई जहन्नयं परित्ता संखेजमेत्ताणं रासीणं अन्नमन्नब्भासो रूवुणो, उक्कोसं परिता संखजयं होइ. अहवा-जहवय जुताण संखेजइरूवणं उक्कोसयं परित्ता संखेजयं होइ, जहन्नयं जुत्ता संखेजयं कित्तियं होइ, जह परित्ता संखेज्जइ मित्ताणं रासीणं अन्ननन्नभासो पडिपुन्नो, जहन्नयं जुत्ता संखेजई होइ, अहवा उकोस परिसा संखेजइ रूवं पखित्ता, जहन्नयं जत्ता संखेजयं होइ, आवलिया वितित्तिया चेव तेणंपरं अजहन्नमणकोसयाई ठाणाई जाव उक्कोसयं जत्ता, संखेजइ न पावइ / उक्कोसयं जुत्ता संखेज्जयं कित्तियं होइ, जहन्नएणं जुत्ता उस के आगे अजघन्यो उत्कष्ट परिता असंख्यात यावत् उत्कृष्ट परिता नहीं पावे. अहो भगवन् ! उत्कृष्ठ परिता असंख्यात कितने होते हैं ? अहो शिष्य ! जघन्य परिता संख्याते की रासी से परस्पर गुनाकार करे से पांच पांच पच्चीस, पचीस पांच सवासो, सवासो पांच सवाछसो,* सवाछमो पांच सबाइकीससो. इस प्रकार परस्पर गुनाकर करे उस में से दो रूप कमी करे. वे मध्यम परिता असंख्यात होये और एक रूप ओर उस में डाल देये उत्कृष्ट परिता असंख्याते होवे.अहो भगवन् ! जघन्य युक्ता असंख्यात कितने होते हैं ? अहो शिष्य ! जघन्य परिता की राशी कही उस राशी को राशी मुने करे वह जघन्य युक्ता असंख्याता होवे. अथवा उत्कृष्ट परिता असंख्या तामें एक प्रक्षेप करे वे जघन्य युक्ता असंख्याते For Private and Personal Use Only 82 अनव दक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋषिजी भकासक-राजाबहार लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* अर्थ

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