________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 880 Hot एकत्रिंशत्तम्-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल पएसे से पदेसे नो जीवे खंधे पदेसे से पदेसे नो खंधे तं ण भवति, कम्हा ? | इत्थ खलु दो समासा भवंति तंजहा-तप्परिन / कम्मधारएय तं ण जति. कतरेणं समासेण भणति किं तप्परिसेण कम्म धारणं जड़ , पुरिने भणसि को समभिरूदी नय बोला तूने जो कहा कि धर्मास्ति का प्रदेश वह धर्मास का प्रदेश है यावत जी का प्रदेश है वह जीव का प्रदेश काना और स्कन्ध के प्रदेश को स्कन्ध प्रदेश कहना परंतु प्रदेश को आर * स्कन्ध नहीं कहना. परंतु यह वात मिलती नहीं है. क्यों कि यहा निश्चय से दो समास होते हैं. तद्यथातत्पुरुष समास, कर्म पारय समास. धम्मा यह सप्त धर्मी में प्रदेश हुब जैसे बने इस्ति इस में वन अलग और हस्ति अलग, यहां नो नहीं बन में हाथी ऐसे तत्परुष समास है. तथा कर्मधारय धर्म प्रथमाधर्म जो वह प्रदेश हुवा, तब तो हंसो ऐसे कर्म धारय में धम्मे सप्तमी तत्परुप प्रथमातो कर्मधारय में सन्देश होथे इस लिये नहीं मालुम किस समासी धर्म प्रदेश ऐसा करते हैं. किं तत्परूप अथवा कर्म धारय समझ पडती नहीं है धम्म शब्द में 2 विभक्ति 17-11 जानाती सप्तमी नहीं की इस लिये वह तत्पुरुष कहता है वह ऐसे यहां स-पुरुष नहीं. और जो कर्म धारय से समास कह तो वह भी विशेष से के हे धर्म जो प्रदेश यहां जो विशेष कहना चाहिये ते धर्म प्रदेश धर्म श्वासो प्रदेशस्य इति समानाधिकरण कर्म धारय यों करते सममी की शंशा के अभाव से तत्पुरुष का संभव न होवे यह भाव. अधर्म जो दश For Private and Personal Use Only