________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 अनुवादकाल ब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक प्रापिजी भवियसरीर वतिरित्त दव्यसंखा ? जाणयसरीर भवियसरीर यतिरित्त दबसंखा ! तिविहा पण्णचा तंजहा-एगभविए, बद्ध उए, अभिमुह नामगोत्तेय // 14 // एग भवरण भंतेएगभविएत्ति कालओ केवचिरं होइ, ?गोयमा! जहन्नणं अंतोमुहुत्त उक्कोसणं पुवकोडी।वहाउएणं भंते!वहाउएत्ति कालओ के वचिरंहोइ ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुषकोडी तिभागं अभिमुह नामगोत्तेणं भंते ! अभिमुहनामगोत्तेत्ति बेय शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य संख्या किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! ज्ञेय और भव्य व्यति- अ रिक्त संख्या तीन प्रकार कही है तद्यथा- एक भव शंख का पूर्ण कर परवा में उत्पन्न होवे वह एक भविक, 2 शंख के आयष्य का वध किया वह बन्ध आयु संख्या. जार 3 शंख का भव प्राप्त करने सन्मुख हुवा समुद्घात वक्त अभिमुख नाम गोत्र संख्या // 94 // अहो भगवन् ! एक अविका एक भषिक की बार स्थिति कितनी होती है ? अहो शिष्य ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट कर 13. नियंचवत् तथा मनुष्य में से आवे सो. अहो भगवन् ! बन्ध आयुष्य की बन्ध आयुष्य में काल स्थिति कितनी कही ? अहो शिष्य ! जघन्य अन्तर्पत उत्कृष्ट गोटी पूर्व का तीसरा भाग. अहो भावन् ! अभिमुख नाम गौत्र की अभिमुख नाम गोपने काल स्थिति कितनी कही ? अहो शिष्य ! जघन्य एक समय सो भव का अन्तिम समय जानना और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त वह मारणान्तिक समुदात का पीछे * प्रकाशक-राजाबहादुर काला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only