________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 322 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी तहा ससविसाणं॥४॥ तं उवमसंखा॥९७॥ से किं तं परमाणसंखा ? परमाणसंखा! दुविहा पण्णता तं नहा कालिय सुय सारिमाण संखःई,दिट्टिवाय सुय परिमाणसंस्वाय॥ से कि तं कालियलय परिमाणसंख? कालियसयपरिमाण संखा अणेगविहा पण्णत्ता तंजहा-पज्जवसंखः, अक्ख खा, संघाय खा, पदसंखा, पादसंखा गाहासंखा, सिलोगसंखा, वेढसंखा, निजतिसंखा, अणुउगदारसंखा, उद्देसगसखा, अज्झयण संखा, सुयखंधसंखा, अंगसंखा, सेतं कलियसुत परिमाणसंखा // 98 // से किं तं को अन होती ओपमा कहते हैं,-गद्धे के शृंग समान शृंगाल के शृंग, इत्यादि पद ओपमा संख्या प्रमाण हुआ / / 97 // अहो भगवन् ! प्रमाण संख्या किसे कहते है? हैं शिष्य ! प्रमाण संख्या दो प्रकार की कही है. तद्यथा-कालीक सूत्र प्रमाण संख्या और द्रष्टी वाद सूत्र प्रमाण संख्या // कालिक सूत्र प्रमाण संख्या किसे कहते है ? कारिक सूत्र प्रमाण संख्या अनेक प्रकार से कही है तद्यथा-१ अक्षर पर्याय की संख्या. 2 अक्षर की संख्या, 3 अक्षर के मिलापसे संघात हो उसकी संख्या 4 पदकी संख्या, 5 गाथा की संख्या, 6 श्लोक की संख्या, बेटा-छन्द की संख्या. 8 निक्षे उपोद्धात नियुक्ति की संख्या, 1 चारों अनुयोग द्वार की संख्या. 10 उद्देशे की संख्या, 11 अध्ययनों की संख्या, 12 श्रुतस्कन्ध की संख्या, 15 अंग की संख्या. यह कालिक मत्र प्रमाण हुवा // 28 // अहो *पकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालामसादजी* For Private and Personal Use Only