________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अर्थ 2 अनुगर क बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी22 कम्मए बेइंदिय तेइंदिय चा दियाणं जहा पुढविकाइयाणं पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं जहा वाउकाइयाणं, मणुस्साणं जाव गोयमा ! पंच सरीरा पण्णत्ता तंजहा-उरालिए वेउविए, आहारए, तेयए, कम्मए,वाणमंतरा जोतिसिया वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं, // 49 // केवइयाणं भंते ! ओरलिय सरीरा पत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंधेलगाय, मुक्केलगाय. तत्थणं जे ते बंधेलगा ते असंखेजाहि उसप्पिणी उसीप्पणीहिं अवहीरती, कालओ, खेत्तओ असंखज्जा लोगा. जैसे चार शरीर. मनुष्य के पांचों शरीर. वाणव्यन्नर, ज्योतिषी और वैमानिक के नेरीये के जैसे ही तीन शरीर पाते हैं // 49 // अहो भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? अहो शिष्य ! र आदीरक शरीर दो प्रकार के कहे हैं तद्यथा-जो शरीर बन्धन कर जीव बैठा है वह बन्धलक शरीर में और जो शरीर गये जन्म में कर 2 छोड आया है वह मुकेलक. इस में बंधेलक औदारिक शरीर , हैं गात हैं. 4 एकेक समय में एकेक औदारिक शरीरकाने हो असंला उत्तापणी। S ..... गाव. यह काल से कहा, और क्षेत्र से एकेक शरीर के साथ एकेक आकाश | में प्रदेश स्थापन पते असंख्यात लोक के आकाश प्रदेश स्थापन होजावे. और मुकेलक (छोडे हुवे) xनगोद में जीव अ परंतु शरीर तो असंख्यात ही है. एकेक शरीर में अनन्त२ जवि रहे हैं. * पकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी * For Private and Personal Use Only