________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सन 288 संट्राण गुणप्पमाणे, जाव आयम संटाण गुणप्पभाणे से तं संट्राण गुणप्पमाणे // से तं अजीव गुणप्पमाणे // 65 ॥से किं तं जीवगुणप्पमाणे ? जीवगुणप्पमाणे तिविहे पणते तंजहा-णाणगणप्पमाणे, दसण गणप्पमाणे, चरित्तगणप्पमाणे // से कि त णाणगुणप्पमाणे णाणगुणप्पमाणे चरविहे पण्णत्ता तंजहा-पचक्खे अणुमाणे,उवमे,आगमे // से किं तं पच्चक्खे ? पच्चक्खे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-इंदिय पच्चक्खेय, णोइंदिय पच्चक्खेय // से किं तं इंदिय पच्चक्खे ? इंदिय पञ्चक्खे प्रकार कहे हैं ? अहो शिष्य ! संस्थान गुन प्रमान के पांच प्रकार कहे हैं. परिमंडल संस्थान यावत् अर्थ आयतन संस्थान यह संस्थान गुन प्रमान हुवा और यह अजीव गुन प्रगान भी इवा. // 65 // अहो भगवन् ! जीव गुन प्रमान किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जीव गुन प्रमान तीन प्रकार का कहा है. तद्यथा-१ ज्ञान गुन प्रमान 2 दर्शन गुन प्रमान, और 3 चारित्र गुन प्रमान, अहो भगवन् ! ज्ञान गुन में प्रमान कितने प्रकार का कड़ा हैं ? अहो शिष्य ! चार प्रकार का कहा है. तद्यथा-१ प्रत्यक्ष प्रमानी 2 अनुमान प्रमान, 3 उपमा प्रमान, और 4 आगम प्रमान. अहो भगवन् ! प्रत्यक्ष प्रमान किसे कहते हैं है। हैं ? अहो शिष्य ! प्रत्यक्ष प्रमान के दो भेद कहे हैं तद्यथा-१ इन्द्रिय प्रत्यक्ष मान और 2 नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमान. अहाँ भगवन् ! इन्द्रिय प्रत्यक्ष प्रमान किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! इन्द्रिय है। अनुवादक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अगोरख ऋषिजी 6 प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only