________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र से तं पडुपन्न काल गहणं. से किं तं अणागत काल गहणं ? अणागत काल / गहणं-अब्भस्ल निम्मलतं, कारणाय निरिसाविजया मेहा, थाणियाउ भामो, सब्भारत्ता पणिद्धाय. वारुणं वा महिंद का अन्नयर वा पसत्थं उप्यायं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा सुबुट्ठी भविस्लती. से ते अणागत काल गहणं, एहसिं चेव विवच्चा से तिविहं गहणं भवति तंजहा-अतीत काल महणं, पडुप्पन्न काल गहणं, अणागय काल गहणं, से किं तं अतीत काल गहणं ? अतीत काल एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्थ 489363- प्रमाण का विषय 9822280 निपजता हुवा अन्य उदार भाव से दिव्याला हवा आहार पानी को देखकर जाने की या वर्तमान काल में सुभिक्ष वर्तता देखाता है. यह प्रत्युत्पन्न काल हुचा. अहो भायन ! अनागत काल ग्राण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! कृष्ण वर्ण अच्छादित विजली सहित मेघ को देखे, पानी से नहुवा ऊंडा गर्जारव करता हुवा मेध देखे, रक्त वर्ण संध्या फुली हुई देखे. आर्द्रा मूलादि नक्षत्रों के योग के जो वायु का उत्पात उत्पन्न हुवा और भी इस प्रकार के प्रशस्त लक्षणों को देख कर उसे अनुमान 10 करे कि आगमिक काल में यहां वृष्टी होगी. यह अनागत काल कहा. अब इस के विपरीत चिन्ह ? कहते हैं, वह भी तीन प्रकार से ग्रहण किये जाते हैं. तद्यथा-१ अतीत काल ग्रहण, 2 प्रत्युत्पन्न 4 For Private and Personal Use Only