________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 223 // 70 // से किं तं सामन्नदिटुं ? सामन्नदिटुं जहा एगो पुरिसो तहा. बहवे पुरिसा, जहा बहवे पुरिसा तहा एगो पुरिसो, जहा एगो कारिसावणो, तहा बहवे ऋरिसावणा, जहा बहवे करिसावणा, तहा एगो करिसावणो, से तं सामन्नदिटुं / 71 // से किं तं विसेसदिटुं ? विसेस दिटुं से जहा नामए केइ पुरिसे. कंचि पुरिसं बहुणं पुरिसाणमझे पुव्व दिटुं पच्चाभजाणेज्जा अयं से पुरिसे बहु क :सावणाणं मझे पुव दिटुं करिसावणं पञ्चभिज्जाणिज्जा. अयं से करिसावणे किसे रहते हैं ? अहो शिष्य ! जो एक जैसा अन्य अनेक को देखकर जाने सोष्टी सामान्य जैसे-१ किसी एक देश के पुरुष को देखकर उस जैसे अनेक पुरुषों को जाने,तैसे ही अनेक पुरुषों को देखकर एक पुरुषों है को जाने, एक सौनये को देखकर अनेक सौनये को जाने अनेक सौनये से एक सोनये को जाने, इत्यादि कार से अनेक को और अनेक से एक को जाने सो सामन्य दृष्टी साधर्मिक कहना // 71 // अहो भगवन् ! विशेष दृष्टी साधर्मिक किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! विशेष दृष्टि साधर्मिक यथा दृष्टान्त कोई अनुमान का करने वाला पुरुष किसी एक पुरुष को बहुत पुरुषों की परिषद में बैठा हुवा देख कर of जाने कि मैंने इस पुरुष को पहिले कहीं देखा है ऐसे ही बहुत से सोनये के अन्दर किसी एक सोनये ॐ को देखकर जाने की यह सोनया पहिले देखा है. यह सामान विशेष दोनों का भेद कहा ऐसे अनुमान 48b48 प्रमाण विषय <28828 For Private and Personal Use Only