________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 धखदसणस्स घड पड कड रहादिएमु दव्वेमु अचक्खू दसणिस्स आय भावे, ओहि दसणिस्स सव्वरूवी दव्वेहिं, न पुण सव्वपजवेहि, केवल दमण केवल सणस्स सव्वदव्वेहिय सबपज्जवेहिय, से तं देसणगुणप्पमाणं // 87 // से किं तं चरित्त गुणप्पमाणे? चरित्तगुणप्पमाणे पंचविहा पण्णत्ता तेजहा--गाइय चरित्त गुणप्पमाणे, छेदोवढावण चरित्त गुणप्पमाणे, परिहार विसुद्धिय चरित गुणप्पमाणे, मुहुम संपराय चरित्त गुणप्पमाणे, अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे // सामाइय चरित्त अर्थ / कर आदि द्रव्य को देखता है. अचक्षु दर्शनी अचक्षु दर्शन से शब्द गंध रस स्पर्श को देखता है. "ह अवधि दर्शनी अवधि दर्शन से रूपी द्रव्य को देश से देखता है परंतु सर्व से नहीं, केवल दर्शनी केवल दर्शन से सर्व द्रव्य सर्व पर्याय को देखता है यह द्रव्य गुण प्रमाण कहा और यह दर्शन गुन प्रमाण कहा . 5 // 87 // अहो भगवन् ! चारित्र गुण प्रमाण किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! चारित्र गुण प्रमाण पांच प्रकार कहा है. तद्यथा-१ सामायिक चारित्र गुण प्रमाण, 2 छेदोपस्थापनीय चारित्र गुण प्रमाण, 11 परिहार विशुद्ध चारित्र गुण प्रमाण, 4 सूक्ष्म सम्पराय चारित्र गुण प्रमाण. और 5 यथाख्यात पारिश गुण प्रमाण. इस में सामायिक चारित्र गुण प्रमाण दो प्रकार का कहा है तद्यथा-१ इत्वरयोडे काल का सो प्रथम अन्तिम तीर्थंकरों के बारे में सामायिक चारित्र का परिवर्तन कर छदोषस्थापनी 48+ एकाशित्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्व मूल 88.प्रमाणका विषय 4848862 For Private and Personal Use Only