________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 अनुवादक बालब्रह्मचारि मुनि श्री अमोलख ऋपिजी गुणप्यमाणे दुविहा पगना तंज हा इतरिएय, आपकहर. छेसोवट्ठावण चरित गुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा साइयारेय, निरइयारेय. परिहार विसुद्धिय चरित गुणप्पमाणं दुविहे पण्णत्ते तंजहा-णिविसमणार अणिविटुकाईएय // सुहुम संपराय चरित्त गुणप्पमाणे दुविहे पण्णते तंजहा-पडिवाइय, अपडिवाइय. अहक्खाय चरित्त गुणप्पमाणे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-छउमत्थएय, केवलिएय, से तं चरित दिया जावे मो और आवकाहिक धीच के बाईस तीर्थंकर के बारे तथा महा विदेह क्षेत्र में सब उम्मर सामायिक चारित्र ही रहे. 2 छेदोपस्थापनीय चारित्र गुण प्रमाण दो प्रकार का कहा. तण्यासातिचार सो किसी प्रकार कर बहा दोष सेवन किये दिया जावे सो. और निरातिचार सो-सामायिक चारित्र ग्रहण किये पाद सातवे दिन. चार महिने, तथा छ महिने में छेदोपस्थापनीय दिया जावे तथा तेवीसवे तीर्थंकर के साधु चौवीसबे तीर्थंकर के शासन में आते छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रहण करे.. 3 परिहार विशुद्ध चारित्र गुण प्रमाण दो प्रकार कहा है तद्यथा-निर्विश्राम-जो तपश्चर्या करे सो. और विश्राम-वैयावच्च करे सो, 4 सूक्ष्म सम्पराय चारित्र गुण प्रमाण के दो भेद-प्रतिपाती-उपशम श्रेणिपाला और अपतिपाती-क्षपक श्रेणिवाला. 5 यथाख्यास चारित्र गुण प्रमाण दो प्रकार का + कहा है. तपथा-१ अस्त, और 2 केवल ज्ञानी. यह चारित्र गुण प्रमाण हुवा. और यह जीव गुण / काशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी For Private and Personal Use Only