________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्र भय * एकत्रिंशत्तम-अनुयागद्वार सूत्र-चतुर्थ मूस संगहस्सवि उभिय नेयसमारूढा पत्थर, उज्जुसुय पत्थउवि, पत्थउ मिजतिपत्थर, तिण्हं सदनयाणं पत्थयस्स अत्थाहिगार जाणउ पत्थउ, जस्सबा वसेणं पत्थर निप्पज्जइ से तं पत्थयदिटुंतेणं // 9 // से किं तं वसहिदिटुंतेणं ? वसहि दिटुंतेणं से जहा नामए केइ पुरिसे किंचि पुरिसं वदेजा कहिं भवं वसति ? अविसुद्धो णेगमो भणइ-लोगेवसामि, लोगे तिविहे पण्णत्ते तंजहा-उड्नेलोए, अहे. लोए, तिरियलोय तेसु सम्वेसु भवं वससि? विसुद्ध णेगमो भणइ-तिरियलोए वसामि, पाया माने क्यों कि इन नयोंवाले के उपयोग ही प्रमान है, वह पाया में नहीं है। इस लिये पाये के जान में को पाथा मानते हैं, जैसे " नमो बंभीए लिबीए" इस में लिपी के ज्ञायक ऋषभ देवजी को नमस्कार किया है परंतु लिपी को नहीं, क्यों कि लिपी में उपयोग नहीं होता है. यह प्रथम पाथा का दृष्टान्त / हुवा // 90 // अहो भगवन् ! वसति का दृष्टान्त किस प्रकार है ? अहो शिष्य ! यथा दृष्टान्त कोई पुरुष किसी पुरुष से कहे कि तू कहां रहता है ? उसे अशुद्ध नैगम नयवाले ने उचर दिया. मैं लोक में * रहता हूं. प्रश्न-लोक तो तीन हैं उर्ध्व अधो त्रिक. तू उन तीनों में रहता है क्या ? उत्तर-विशुद्ध * नैगम नयवाला वोला-मैं तिर्छ लोक में रहता हूं. प्रश्न-तिच्छे लोक में नंबूद्वीप से स्वयंभूरमण समुद्र पर्यंत असंख्यात द्वीप समुद्र हैं उन सब में तू रहता है क्या? उत्तर-विशुद्धतर नैगम नयवाला बोला 980288000 प्रमाण का विषय 48848817 For Private and Personal Use Only