________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सा गुणप्पमाणे // से तं जीव गुणप्पमाणे // से तं गुगप्पमाणे // 88 // से किं ते नयप्पमाणे?नयप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते तंजहा-पत्थग दिटुंतेणं विसहे दिटुंतेणं, पदेस दिटुंतेणं // 89 // से किं तं पत्थग दिटुंतेणं पत्थग दिटुंतेणं से जहा नामए केइपुरिसे परसुंगहाय अडविहुतो गच्छेजा तं पासित्ता केइ वदेजा कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो णेगमो भणति-पत्थयगरस गच्छामि,तंच केइछिंदमाण पासित्ता बदेजा किं भवंछिंदसि? एकत्रिंशत्तम-अनुयोगदार ब-चतुर्थमुल .14 4884882 प्रमाण का विषय 4.28 प्रमाण हुवा. और गुण प्रमाण भी हुवा // 88 // अहो भगवन् ! नय प्रमाण किसे कहते हैं ! अहो शिष्य ! अनन्त स्वरूप वस्तु को एक अंश कर जाने उसे नय कहते हैं. उस का स्वरूप तीनों दृष्टांतों कर समझाते हैं. 1 पाया के दृष्टान्त से, 2 वसति के दृष्टान्त से. और 3 प्रदेश के दृष्टान्त से // 89 // अहो भगवन ! पाथे का दृष्टान्त किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! पाथे का दृष्टान्त सो-यथा दृष्टान्त कोई + पुरुष फरसी हाथ में ग्रहण करके अटवी में जाता है. उसे देख कर कोई कहे तू कहा जाता है ? तब अशुद्ध नैगम नय वाला बोला कि मैं पाथा के लिये जाता हूं. बह जाता तो है काष्ट ग्रहण करने परंतु / उस काष्ट का पाथा बनावेगा इस लिये यहां कारण में कार्य का उपचार किया है. उप्त काष्ट को कोई 561 छेदता हुवा देख फूछा तू क्या छेदता है ? ! विशुद्ध नै नप याला बोला- पाथा छेरना / 438 For Private and Personal Use Only