________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 302 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी: तिविहे पणत्ते संजहा-अत्तागमे, अणंतरागगे, परंपरागमे // तित्थगराण अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे अत्थरस अणंतरागमे, गणहर सीसाणं सुत्तरस अणंतरागमे, अत्थस्स परंपरागमे. तेणं परं सुत्तरसवि अत्थस्सवि नो अत्तागमे णो अणंतराग़मे परंपरागमे, से तं लोगुत्तरिए // से तं आगमे. से ते णाणगुणप्पमाणे // 86 // किं तं दसणगुण पमाणे ? दसणगुण प्पमाणे-चउविहे पण्णत्ते तंजहा-चक्खूदंसण गुणप्पमाणे, अचक्खू दसण गुणप्पमाणे, ओहि सण गुणप्पमाणे, केवल सण गुणप्पमाणे, // चक्खू सण गुरु आदि के बनाये, 3 परम्परागम-परम्परा से चले आते सो, जैसे-तीर्थकरने अर्थ कहा यह अतागम, गणधर ने उसे सूत्र रूप कहा वह मूत्तागम से अत्तागम, अर्थ से अन्तरागम, गणधरों के शिष्यो को मूत्र से अनन्तरागम, अर्थ से परम्परागम, उस के उपरांत मूत्र से भी और अर्थ से भी अत्तागम भी नहीं, अनन्तगगम भी नहीं. केवल परम्परागम जानना. यह लोकोत्तर और आगमका कथन हुवा. और पह ज्ञान गुन का प्रमाण हुवा // 86 / / अहो भगवन् ! दर्शन गुन प्रमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! दर्शन गुन प्रमाण के चार भेद कहे हैं तद्यथा-1 चक्षु दर्शन गुन प्रमाण, 2 अचक्षु दर्शन गुन प्रमाण, अवधि दर्शन गुन प्रमाण, और 4 केवल दर्शन गन प्रमाण, यह जैसे-चक्ष दर्शनी चक्ष से घट पर अर्थ काशक-राजाबहादुर बाला सुखदेवसहायनी-ज्वालाप्रसादजी. | For Private and Personal Use Only