________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 मादि. सीह केसरेणं, वस्ह ककुहेणं महिलंवलयबाहाए परिअरबंधण भडं जाणिज्जा, 1 महिलिय निवसणेणं, मिशेण दोण विगं, कविंच एगाए गाहाए से तं अवयवेणं॥ से तिं आसरणं ? आसए-अग्निधूमणं. सलिलं बलागेणं, वुट्टि अभविगारेणं, कुलपुत्तसीलसमायारेणं, से तं आसएणं से तं वं // 69 // से कि तं दिहिराइम्म ? दिट्टिसाहम्मवं दुविहं पण्णत्तं तंजहा-सामन्नदिटुंच, विसेसदिटुंच जो चतुष्पद कर चतुष्पद [ पशू ] को जाने, बहुत पांव कर ओमज [ कान खजूरे ] को भाने, केसरा अर्थ कर सिंह को जाने, स्कन्ध कर वृषभ को जाने, बलिये घडीयों ] कर स्त्री को जाने, हथियारों के बन्धन कर सूभड को जाने. कंचूंकी कर विवाहित स्त्री को जाने, एक सीजे हुवे धान्य के कन कर सब धान को जान, काव्य कर कवि को जाने, इत्यादि अवयव कर जाने उसे अवयब कहना. यह अवयव हुवा. अहो भगवन् ! आश्रयवत् किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! एक के आश्रय कर अन्य को जाने सो आश्रयवन् जैसे-धूम्र के आश्रय कर अग्नि को जाने, मेघ (बद्दल ) कर वर्षाद को जाने. बगल कर सरोवर को जाने, कुलदन कर शीलवंत जाने, यह आश्रय जानना. यह सेसवं के भेदानुभेद हुवे // 65 // अहो भगवन् ! दृष्टी साधर्मिकवत् किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! दृष्टी सा(मकवत् कर दो प्रकार कहे हैं, तद्यथा- सामान्य और 2 विशेष // 70 // अहो भगवन सामान्य दृष्टी सार्मिक 1 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादराला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only