________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मानि श्री अमोलक पिाजी पुवलिंग केणइ त खत्तेणवा वणवा लच्छणेणवा, मसेणवा, तिलरणवा, सेत्तं पुत्ववं / / 68 // से किं तं सेसवं ? सेसवं-पंचविहं पण्णत्तं तंजहा-कज्जेणं,कारणेणं गुणेणं, अवयवेणं, आलएणं // से किं तं कजेणं ? कजेण-मोरं किंका. ईएणं, हयं हेसिएणं, गयं गुलगुलाइएणं. रहं घणधणाइएणं, से तं कजेणं // से किं तं कारणेगं ? कारणेणं-तंतबो पडस्स कारणं, ण पडोत्तंतुकारणं, वारणा कडस्स पहचाने तो कि-प्रथम के देखे हुवे चिन्ह कर पहचाने. तद्यथा-१ खत करके-शरीर के लम्बे ठिगने से आकार कर, वर्णकार--ौर कृष्णादिवर्ण कर. वाण कर स्वस्तिकादि लक्षण कर मस्सकर तिलकर इत्यादि के अनुसार कर पहिचाने उसे पूर्ववत् का // 68 // अहो भावन् ! शेएवत् किसे कहते है ? अहो शिष्य ! शयर से पांच प्रकार कहे है. तद्यथा-१ कार्यकर, 2 कारण कर, 3/ अवघव कर, और 4 माशकर // अहो भगन् ? कार्यकर अनुमान किस प्रकार होता है ? अहो शिष्य ! 1 मयूर को कोकारन हद कर पायाने. 2 घोडे को उकार शब्द कार पहचाने, 3 हस्ति को गुरुगुलाट शब्द कर पड़नाने, 4 रथ को घणघणाट शब्द कर पहचाने. इत्यादि कार्य कर है पहचाने वह कार्यवत् कहना. यह कार्यवत् शुवा. अशे भव ! कारण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! मृत है वह बस रूप कार्य साधने का कारण है. परंतु वस्त्र तंतु का कारण नहीं है. शरकट [ तुलाइ ] 2 *प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only