________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 297 48. एकोत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूळ 4 वायव्वं वा अन्नयरं अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिजइ जहा कुबुट्ठी भाविस्सति, से तं अणागयकाल गहणं, से तं विसेस दिटुं। सेतं दिट्ठि साहम्मवं // से तं अणुमाणे // 73 // से किं तं उवम्मे ? उवम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा—साहम्मोवणी, एय, वेहम्मोवणीएय // 74 // से कि तं साहम्मोवणीए ? साहम्मोवणीए तिविहा पण्णत्ता तंजहा-किंचि साहम्मोवणीए, पायसाहम्मोवणीए, सव्वसाहम्मोवणीए / / 75 // से किं तं किंचि साहम्मे ? किंचि साहम्मे जहा मंदरो तहा सरिसवो, बायु चले, नैऋत्यकूण का वायु हो जिस से कुवष्टी जाने अधेय मंडल वाय मंडल और भी इस प्रकार का अप्रशस्त उत्पातादि देख कर जाने कि आगमिक काल में यहां कुवृष्टी होगा. यह अनागत काल का F ग्रहण किया यह विशेष दृष्टी सर्मिकपना कहा. और यह अनुमान प्रमान कहा // 73 // अहो भग-2 वन् ! उपमा परिमाण किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! उपमा प्रमाण के दो प्रकार कहे हैं तद्यथा-300 11 साधर्मोपनित और 2 वैधर्मो पनित // 74 // अहो भगवन् ! साधर्मोपनित किसे कहते हैं ? अहो 6 शिष्य ! साधर्मोपनित तीन प्रकार कहा है, तद्यथा-१ किंचित साधर्मोपनित,२ प्राय साधर्मोपनित, और " 3 सर्व साधर्मोपनित / / 75 // अहो भगवन् ! किंचित साधर्मोपनित किसे कहते हैं ? अहो शिष्य 11488 प्रमाण विषय +888 For Private and Personal Use Only