________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1. अनुवादक बालब्रह्मचारा मुनि श्री अमोलक ऋापनी तं समासओ लिविहं गहणं भवति तंजहा--अतीत काल गहणं, पडुपन्नकाल गहणं, अणागयकाल गहणं // 72 // से किं तं अतीत काल गहणं ? अतीत काल गहणं उत्त-णाणि वणाणि, निप्फन्न सव्व सरसंवा मेदिणी पुण्णाणि, कुंड सरणदाहिया. तलागाणि पासित्ता तेणं साहिजइ जहा सुबुट्ठी आसी से तं अतीत काल गहणं // से किं तं पडुपन्न काल गहणं ? पडुपन्न काल गहणं साहु गोयरग्गगयं विछंडिय पउर भत्तपाण पासित्ता ते साहिजइ जहा सुभिक्खं वइ, प्रमान कर तीनों काल की बात को जानने का कहते हैं // वह अनुमान प्रमान से निर्णय तीन प्रकार से होता हैं. तबथा-१ अतीत (भू. ) कालका ग्रहण, 2 प्रत्युपान (वर्तमान ) काल का प्रण और 31 अनागत ( भविव्य) काल का हए // 72 // अहो भगवन् ! अतीत काल का ग्रहण किस प्रकार हाता है ? अहो शिष्य ! जैसे कोइ विचरण मनुप्य रास्ते में गमन करता बहुत हरित तृणोकर अच्छादित पृथ्वी को देखे फलफूल पत्रों के भार से भरे वृक्षो को देखे, शाम्यकार फरित खेंगो को देख. नदी तलाबादि जलाशयो पानी से पूर्ण भरे देखे तब उक्त अनुमान से प्रमान करे कि अतीत काल में जल वृटी अच्छी हुई. यह अतीत कालका ग्रहण कहा // अहो भगवन् / प्रत्युत्पन्न काल का ग्रहण किसे * कहते हैं ? अहो शिष्य ! जैसे कोई विचक्षण साधु गोवरी को गये उनोंने ग्रहस्थ के घरों में बहुत प्रचूरा *प्रकाशक-राजाबाहादुर लाला मुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only