________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोयमा दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बहेलगाय मुक्केलगाय, जहा तेयग सरीरा तहा कम्मग सरीरावि भाणियव्वा // 54 ॥णेरइयाणं भंते ! केवतिया ओरालिया सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंद्धेलगाय मुक्केलगाय तत्थणं जे बंडेलगा देणं गत्थी तत्थणं जे ते मुक्केलगा तेणं जहा ओहिया ओरालिया सरीरा तहा भाणियव्वा // मेरइयाणं भंते ! केवतिया वेउव्विया सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंडेलगाय मक्केलगाय तत्थणं हैं // 53 // अहा मन कार्याण शरीर कितने कहे हैं? अहो शिष्य ! कार्माण शरीर दो प्रकार के कहे हैं. चेक और 2 केलक. जैसा तेजस शरीर का कहा तैसा ही कार्माण शरीर का कहना // 14 // अ. भगवन ! :., के औदारिक शरीर कितने प्रकार के हैं ? अहो शिष्य ! दो प्रकार के हैं. : बंधेलक और 2 सकेलक. इस में जो बंधेलक हैं वह तो वर्तमान काल में नहीं हैं क्यों कि नेरीये वैक्रेय शरीर धारी हैं. और मूलक तो औधिक औदारिक शरीर का कहा तैसा / कहना.अहो भगवन् नेरीये के वैकेय शरीर कितने प्रकार का कहा है?अहो शिष्य दो प्रकार के हैं तद्यथा बंधेलक और मूके लक. इस में से बंधेलक तो यात हैं एकेक समय में एकेक करने से असंख्यात अवसर्पिणी 10 उत्सर्पिणी बीस जाय यह काल से और क्षेत्र से असंख्यात श्रेणिक प्रतर के असंख्यात भाग में वह अनुवादक बाल ब्रह्मचारी नि श्री अमोलक ऋषिर्ज प्रकाशक-रानावहादुर ला सुखदेवसहाय जी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only