________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्र 274 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापनी लेणं नस्थि, मुक्केलया जहा उहिया ओरालिया सरीग तहा भाणियव्वा, आहारग स्पीरावि एवं चेव भाणियव्या,तेया कम्म सरीरा जहा एतेसिं चेत् ओरालिय कालीरा तहा भाणियन्या जहा पुढवी काइयाणं, एवं आउकाइयाणं, तेउकाइयाणयसव्व सरीरा भाणियन्या, वाउकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालिया सरीरा पण्णता? गोवमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा-बंडेलगाय मुक्केलगाय, जहा पुढवि काइयाणं ओरालिय सरी। तहा भाणियव्वा, वाउकाइयाणं भंते ! केवतीया वेउव्विय सरीरा पणता? दो प्रकार का कहा है. तद्यथा-बंधेलक और यूकेलक. इस में बंधेला तो नहीं है. और मूकेलक सो जैसा औधिक औदारिक शरीर का कहा नैसा कहना. आहारिक शरीर का भी ऐसा ही कहना तेजस और कार्मान शरीर का जैसा इस के औदारिक शरीर का कहा तैसा सहना. यह जिस प्रकार पृथ्वीकाया में पांचों शरीर का कथन किया, लैसा ही अप्काय और तेजस्काय का कहना. अहो में भगवन् ! वायु काया के औदारिक शरीर कितने प्रकार का है? अहो शिष्य'दो प्रकार का कहा है तद्यथा 1 बंधलक और यूकेलक. वायु का भी पृथ्वी काया के औदारिक शरीर जैसा कहना अहो भगवन्! वाय काया के वैकेय शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? अहो शिष्य ! दो प्रकार के कहे हैं तद्यथा प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only