________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स * अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी भाणियव्या, जहा बेइदियाणं तहा तेइंदियाणं व उरिंदियागवि भाणियध्वा // 58 / / पंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणवि ओलिय सरीरा एवं चेव भाणियव्वा // चिंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवतिया वेउव्विय सरीरा पण्णत्ता ? गोयमा पण्णत्ता तंजहा-बंधेलगाय मुक्केलगाय. तत्थणं जे बंधेलया तेणं असंखिमाहिं उसप्पिणी ओसप्पिणीहिं अवहीरंती कालतो खेत्तओ असंखेज्जाहलो सेढीओ पयररस असंखेजइ भागे, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुल पढम वग्ग लस्स असंखेजति भागो, मुक्कोलया जहा ओहिया, ओरालिया आहारय सरीरा जहा बेइंदियाणं, शरीर का कहा तैसा कहना. जैसा यह बेडन्द्रिय का कथन कहा तैसा ही तेइनिय का और चौरिन्द्रिय का भी कहना // 58 // पंचेन्द्रिय तिर्यंच के औदारिक शरीर भी पूर्वात काया की प्रकार कहना. तिर्यंच पंचेन्द्रिय के वैक्रेय शरीर दो प्रकार का है-१ बंधेलक और मूकेलक. इस में बंधेलक शरीर सो एकेक समय में एकेक का हरण करते असंख्यात सर्पिणी उत्सर्पिणीत होजावे काल से. और क्षेत्र से असंख्यात श्रेणि प्रतर के असंख्यात भाग उस श्रेणि की विकभ सूची अंगुल प्रथम वर्ग मूल क्षेत्र के असंख्यातो भाग जितनी श्रेणि के आकाश प्रदेश उतने वैक्रेय शरीर हैं असुरकुमार से असंख्यातगने * अधिक जानना. और मकेलक का जैसा औधिक औदारिक का कहा तैसा कहना. आहारक शरीरं का अशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * अर्थ For Private and Personal Use Only