________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 282 दोवा तिण्णिवा, कोसेणं सहस्स पुहत्तं, मुक्केलया जहा ओहिया।ओरालियाणं तयग कम्मग सरीरा जन एतेसिं चेव ओहिया ओरालियो तहा भाणियव्वा // 60 // वाणमंतराणं ओरालिया सरिरा जहा नेरइयाणं, वाणमंतराणं भंते ! केवतिया वेउन्विा सरीरा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता तंजहा–बंद्धेलागाय मुक्केलगाय, तत्थणं जे ते बंडेलया तेणं असंखेजा, असंखेजाहि उसप्पिणी ओस प्पिणीहिं अवहीरंती कालतो, खेत्तओ असंखेनामो सेढीओ पयरस्स असंखेज्जति अर्थ कितने प्रकार का कहा है ? अहो गौतम ! दो प्रकार का कहा है तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मुकेलक. इस में बंधेलक शरीर किसी वक्त होवे किसी वक्त नहीं भी होवे. जब होवे तब जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट हजार पृथक्त्व और मूलक का जैसा औधिक औदारिक का कहा तसा कहना. // 6 // वाणव्यन्तर औदारिक शरीर का कथन जैसा नेरीया के औदारिक शरीर का कहा तैसा कहना. अहो भगवन्!वाणव्यन्तर के वैक्रय शरीर किबने प्रकार है? अहो गौतमदोपकार कहे है। तद्यथा-बंधेलक और मूकेलक. इसमें से जो बंधेलक है वे असंख्यात है. एकेक समय में एकेक हरन करने असंख्यात उत्सर्पनी अवसर्पनी है काल व्यतीत होजावे यह काल से कहा और क्षेत्र से प्रतर के असंख्याचवे भाग जितने आकाश प्रदेश में * की श्रेणि आवे विलम्बपने संख्यात सहस्र योजन उस का वर्ग करना उस के एक भाग में एकेक 2.अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद For Private and Personal Use Only