________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org गोयमा! दुविहा पण सा तंजहा-बंडेलगाय मुक्केलगाय, जहा एतेसिं चेव आरालिय सरीरातहा भाणियव्या, तेयग कम्मरस सरीरा जहा एतेसिं चेव वेउब्धिय सरीरा तहा भाणियव्वा, जहा असुरकुमाराणं तहा . जाव थणियकुमाराणं ताव भाणियव्या // 56 // पुढवी काइयाणं भंते ! केवतिया ओरालिय सरीरा पण्णता ? गायमा ! दुविहा पण्णता तंजहा-चंडलगाय मुक्केलगाय, एवं जहा ओहिया ओरालिया सरीरा तहा भाणियव्वा, पुढवीकाइयाणं भंते ! केवतिया वेउव्विया सरीरा पण्णत्ता गोयमा ! दविहा पणत्ता तंजहा-बडेलगाय मुक्केलगाय, तत्थण जे ते बंडेलगा *28. एकोत्रिंशत्तम अनुयोगद्वार सूत्र-चतुर्थ मूल train *98980- ममाण विषय +8 का कहा है. तद्यथा-१ बंधेलक और 2 मुकेलक. जिस प्रकार असुर कुमार के औदारिक शरीर का का कहा तैसे ही आहारक शरीर का भी कहना. और तेजस कार्मान शरीर का इन के वैकेय शरीर जैसा कहना, यह पांचों शरीर का जिस प्रकार असुर कुपार देव का कथन कहा तैसा ही यावत् स्तनित कुमार पर्यंत कहना. // 56 // अहो भगवन् ! पृथ्वीकाया के औदारिक शरीर कितने प्रकार का कहा है ? अहो शिष्य ! पृथ्वी काय के औदारिक शरीर दो प्रकार का कहा है. तद्यथा* बंधेलक और मु.लक. इस में जैसा औधिक औदारिक शरीर का कहा वैसा ही पृथ्वी काय के औदारिक शरीर का कहना. अहो भगवन ! पृथ्वीकाय के वैक्रय शरीर कितने प्रकार का कहा है ? अहो शिष्य + For Private and Personal Use Only