________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अनुवादक वा ब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी जीव दवाण भंते! किं संखेज असंखजा अणंता ? गोयमा ! नो संखजा,नो असंखेजा, अणंता,से केणट्रेणं भंते! एवं बुच्चइ नो संखेजा णो असरमा अर्णता ? गोयमा ! अखिजा नेरइया, असंखेजा असुरकुमारा, जाव असंखेजा थणिय कुमारा, असंखेजा पुढवी काइया जाव असंखेना वाउकाड्या, अणंता वणसइ काइया,असंखेज्जा बेइंदिया जाव असंखेजा चउरिंदिया, असंखेजा पंचिंदिया तिरिक्खजोणिया, असंखेज्जा मणुसा, असंखेज्जा वाणमंतरा, असंखेजा जोतसिया, असंखेजा माणिया, अणंतासिहा, से तेणद्वेणं गोयमा! एवं बुच्चती जीव दव्वा नो संखजानो असंखेजा अणंता॥४८॥कतिणं किस कारन ऐसा कहा कि जीव द्रव्य अनन्त हैं ? अहो शिष्य ! असंख्यात नरक के मेरोये हैं, असंख्यात अमर कुमार देव हैं यावत् असंख्यात स्थनित कुमार देव है. असंख्यात पृथ्वी काया यावत् असं. ख्यात वायकाया के जीव हैं. अनंत वनस्पति काया के जीव है, असंख्यात बेन्द्रिय थावत् असंख्यात चौरिन्द्रिय जीव हैं. थसंख्यात तिर्यंच पंचेन्द्रिय, असंख्यात मनुष्य [संच्छिम आभिय] असंख्यात वाणभ्यन्तर, असंख्यात ज्योतिषी देव, असंख्यात वैमानिक देव और अनन्त सिद्ध भगवंत के जीव हैं। * अहो शिष्य ! इसलिये ऐसा कहा कि जीव द्रव्य संख्यात असंख्यात नहीं हैं. परंतु अनन्त हैं // 48 // अहो * प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. For Private and Personal Use Only