________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4848808 एकाशचम-अनुयोगद्वार मूत्र-चतुर्यमूल 4882 गोयमा ! जहण्जेणं पलिओवमं उक्कोसेणं पणपण्ण पलिऔवमाइं // सोहमेणं भंते ! कप्पे देवाणं ? गोयमा ! जहण्णं पलिओवमं उक्कोसेणं दो सागरोवमाई, सोहम्मेणं भंते ! कप्पे परिगाहियाणं देवीणं अहन्नं पलिओवमं उकोसेणं सत्तपलिओवभाई, सोहम्मे कप्पे अपरिग्गहियाणं देवी जहन्नं पलिओवमं उक्कोसेणं पण्णास पलिओबमाइं // ईसाणेणं भंते ! कप्पे देवाणं ? गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवम, उक्कोसेणं साइरेगाई दो सागरोवमाई, ईलाणेणं भो ? कप्पे परिगहियाणं देवीणं ? गोयमा ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवमं उक्कोसेणं नव पलिओवमाई, ईसाणेणं काये अपरिग्गहियाणं देवीणं अण्णं साईरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणाणपलिओवमं, पम की उत्कृष्ट सात पल्योपम की, सौधर्म देवलोकबासी अपरिग्रही देवीयों की जघन्य एक फ्ल्य की उत्कृष्ट पचास पल्य की. ईशान देवलोक के देवता की जघन्य कुछ अधिक एक पस्योपम की उत्कृष्ट कुछ। अधिक दो सागरोपम की, ईशान देषलाकेवासी परिग्रह देवी की जघन्य कुछ अधिक एक पल्योपम की उत्कृष्ट नव सागरोपम की. ईशान देवलोकवासी अपरिग्रही देवी की अघन्य कुछ अधिक एक पल्योपय की उत्कृष्ट पञ्चायम पल्योपम की. सनत्कुमारवासी देवता की जघन्य कुछ अधिक दो सागरोपम की एक सात सागरोपप की, माहेन देवलोक के देव की जघन्य कुछ अधिक दो सागर की उत्कृष्ट कुछ अधिक प्रमाण का विषय 4884 0 4 For Private and Personal Use Only