________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 257 एकत्रिंशचम-अनुयोगद्वार सूत्र चर्तुध / तेतीसं सागरोचमाइं, सव्व? सिडेणं भंते ! महाविमाणे देवाणं केवतियं कालंठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नन्नमणुक्कोसं तेतीसं सागरोवमाइं / से तं सुहुमे अडा पलिओवमे / सेतं अद्धा पलिओवमं // 42 // से किं तं खेत्तं पलिओवमे ? खेत्तं पलिओवमे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-सुहमेय ववहारिएय. तत्थणं ___ जे सुहुमे से टप्पे, तत्थणं जे से ववहारिए से जहा नामए पल्लेसिया जोयणं आयम विक्खभेणं, जोयणं उध्वेहेणं, तंतिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं, से णं पल्ल एगा हिया बेआहिय तेआहिय जाव भरिते वालग्ग कोडीणं, तेणं वालग्गा णो अग्नी डशिष्य ! जघन्य अउत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की. यह सूक्ष्म आधा पस्योपम हुषा और आधा पल्योपम भी हुवा // 42 // अहो मगवन् ! क्षेत्र पल्योपम किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! क्षेत्र पल्योपय के दो प्रकार कहे हैं तद्यथा-सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम और व्यवहार क्षेत्र पल्योपम. इस में से सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम को तो यहां स्थिर रखना. और व्यवहारिक क्षेत्र पल्यापम सो यथा दृष्टांत-उत्त प्रकार का योजन का लम्बा चौडा एक योजन का ऊंडा त्रिगुनी परधीवाला उस पाळे को एक दिन के दो दिन के * तीन दिन के यावत् सात दिन के जन्मे बच्चे के वालाग्र की क्रोडाकोडी के समुह कर ठसोठस भरे ऐसा भरे की वह अग्नि से जले नहीं वायु में उडे नहीं पानी में गले नहीं याक्त किसी भी प्रकार विनाश पाने 48488 प्रमाणका विषय 4 अर्थ 498 402 For Private and Personal Use Only