________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भागमेत्ता, सुहुमस्स पणग जीवस्स सरारोगाहणाउ असंखजगुणा, तेणं वालग्गणोअग्गीड हेजा नो वाउ हरेज्जा. नो कुहेजा, पलिविडसेजाना इत्ताए हव्वमगच्छेजा,ततेणं वाससए 2 एगमेनं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे निरए निल्लेवे निराविया भवति से तं सुहुमे अहा पलिउवमे // एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी भवेज दस गुणिया तं सुहुमस्स अद्धा सागरोवमस्स, एगस्स भवे परिमाणं // एतेहिं सुहुमेहिं अद्धा पलिओवम सागरोवमेहि किं पयोयणं, एतेहिं सुहुमेहिं अद्धा पलि ग्वम सागरोवमेहिं नेरइय तिरिक्खजोणिय मणुस्स देवाणं आउयंमविकं // 498 488+प्रशसम अनुयोगद्वारसूत्र-चतुर्थ मूल अर्थ क्योंकि उन की अवगाहना अंगलके असंख्यातवे भाग की होती है, उन बालाग्र कर उस पालेको ठसोठस एसा भरे की जिसे अग्नि जलासके नहीं, वायु उडास के नहीं, पानी गाला नहीं किसी भी। प्रकार विध्वंस पासके नहीं, इन बालाग्र मेंकें सो सो वर्ष में एक बालान निकलते * जितने काल में वह पाला खाली होजावे रजररित लेप रहित साफ होजाये उतने वर्ष के समूह को एक मूक्ष्म “पयोपम *कहना और ऐसे दश कोडा क्रोडी पाले खाली होजावे इतने वर्ष के समूह को एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपमी कहना // अहो भगवन् ! इस मूक्ष्म अद्धा पल्योपम से क्या प्रयोजन हैं ? अहो शिष्य ! इस सूक्ष्म अदा पल्योपम सागरोपम से नरक तिर्यंच मनुष्य देवता का आयुष्य का प्रमाण किया जाता है॥३३॥' प्रयाण का विषय 488248gp For Private and Personal Use Only