________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पण्णता तंजहा-( गाहा ) वीरो, सिंगारो, अब्भुओय, रुद्दो अहोइ बोथयो / / वेलणओ विभन्छो हासो, कलुणो पसंतोय // 1 // तत्थ परिव्वामिय, दाणे तव चरणा सत्तुजण विणासेय // अणणुसयधिती, परक्कमालिंगो वीररसो होइ ॥२॥वीरोरसोजहा सो नाम महावीरो जो रज्जापयहिऊण पव्यइउ॥कामकोह महासत्तू पक्ख निग्घायणं कुणइ / / 3 // सिंगारो नामरसो, रति संजेगिाभिलास संजणणो अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी अहो भगवान् ! नब नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! नव प्रकार के रस कहे हैं जैसे , 1. वीर रस. 2 श्रृंमार रस, 3 अद्भुत रस, 4 रौद्र रस 5 वीडा रस-लज्जा रस 6 वीभत्स रस, 17 हास्य रस, 8 करुणा रस और 9 प्रशांत रस इन नव नाम में से प्रथम धीर रस का वर्णन करते हैं-दान देने में, तपश्चर्या करने में. चारित्र पालने में शत्रु का विजय करने में और पाप का पश्चाताप करने में मन को स्थिर कर सच्चे मन से पराक्रम फोडे इस प्रकार पराक्रम का चिन्ह जहां होने उसे वीररस क हमा. उदाहरण जैसे श्री महावीर का स्वामी परान- सद्धि का त्याग कर प्रवर्या दीक्षा धारन करे फिर कामक्रोधादि महा प्रवल शत्रओं का पक्ष की निचीत करने में प्रवसे यह सञ्चावीर रस है. // 2-3 // अब श्रृंगार रस का वर्णन करते हैं. स्त्री के साथ संभोग के अभिलाषी संयोगिक *काशक राजावहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only