________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 44 भावसंजोगे। से कितं दव्वसंजोगे ? दव्वसंजोगे तिविहे पणत्ते तंजहा-सचित्ते, आचित्ते, मीसए पते किंतं सचिने ? सवित्ते ! गोमिएकोहि पसूहि पसहिए,महिसीए. I उरणीहि, उरणिए, उठीहिं, उद्विताले, सेतं सचित्तं // से किंतं अचिने ? अचित्ते ! छत्तेण छत्ती, दंडेणं दंडी, पडेणं पडी, घडेणं घडी, से तं अचित्ते // से किं सं मीसए ? मीसए हलेणं हालीए, सगडेणं सागडिए, रहेण रहिए, नावाए. नावीए, मी. ओभगवन ! मरित व्य संयोग किसे कहते है? भो शिण्य ! इस के उवारण हैं कहते " जिस के पास गौऐ है उसे गोथान कहते हैं, जिस के पास ऊंट है उसे भौष्टिा कहते हैं, जिस के पास पगु वह पशु वाला कहाला है, जिस के पास अनादि बहुत है वह अजादि वाला कहाता है, यह सचित्त द्रव्य संयोगज नाय हुआ. अहो भगवन् ! अचित्त द्रव्य संयोगज नाम किसे कहते हैं ? अहो / शिष्य ! जैसे छत्र धारने से छत्री दंड धारन करने से दंडी, वस्त्र धान करने से वस्त्री (बजाज घटा पाग्न करने से घटिया कहते हैं. इत्याद अचिन यम्त के प्रसंग से जो नाम पढे उसे अचित्त संयोग नाम कमा. अहो मगवन् ! मीश्र संयोगज नाम किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! मीश्र सेयोगज नाम सो हल चलाने वाला हाली, सकट चलाने वाला साकरी, रथ चलाने वाला सारथी, नावा नुयोगद्वार मुत्र-चतुर्थ पूल 486 * नाम विषय *** Bya * * For Private and Personal Use Only