________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजीक दुवालसंसिए अट्ट कणिए अहिगरण संगाणं संनिए पण्णत्ते, तस्सण एगमेगःकोडी उस्सेहंगुलविक्खंभा तं समणस्स भगवओ महावीरस्स अइंगुलं तं सहरसगुण प्पमाणंगुलं भवति // एतेणं अंगुलप्पमाणेणं // छ अंगुलाई पाउ, दुवालसं गुलाई विहत्थी, दो विहत्थीउ रयणी, दोरयणीउ कुत्थी दो कुत्थिओ धणु, दोधणु सहस्साई गाउयं; चत्तारिगाउय जोयणं॥एएणं प्पमाणंगुलेणं किं पयोयणं? एएणं प्पमाणगुलेणं दोनों योंछेतले होते हैं, ऊपर नीचे के चारों तरफ के आठ, और बीच में के चारों तरफ के चार बारहांस (पेल ) होते हैं, चार ऊपर के चार नीचे के यों आठ कणिका ( कौने ) होते हैं अधिकरक नाम ( सोनार की ऐरण) के. संस्थान ( आकार ) से संस्थित कहा है. उस कांगनी रत्न की एकेक कोडी (तले ) एक उत्सेध अंगुल के प्रमाण से चौडी कही है. और वह श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामीजी का आधा अंगुल+ उसे एक हजार गुना करने से प्रमाण अंगुल का प्रमाण होता है. इस अंगुल प्रमाण अर्थकार कहते हैं कि- श्री महावीर स्वामीजी का शरीर स्वत: के आत्मांगुल से 84 अंगुल ( साढे तीन हाथ ) ऊंचा है, उत्सेध अंगुल से 168 अंगुल का ऊंचा शरीर होता है. और जो उत्तम पुरुष का 108 अंगुल तथा 120 अंगुल शरीर ऊंचा कहा है यह 84 अंगल तो सहज ही ऊंची और दोनों हाथ ऊचे करें तब 24 अंगुल ऊपर होते / 108 अंगुल होते हैं *काशक राजााबहादुर काला सुखदेवसहायजी-ज्वालाप्रसादजी For Private and Personal Use Only