________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकोत्रिंशत्तम-अनुयोमद्वार व चतुर्थ मूल +8+ विसंघाति, अन्नमि काले होटिल्ले संघाते विसंघातिजति, तम्हा से समए न भवति / एतोविअन्नं सुहुमतराए समए समणाउसो ! असंखजाणं समयाण समुदय समिति समागमेणं आयाल आत्तिपवुच्चति, . संखेज्जाउ आवलियाउ ऊसासो संखेजाउ अवलियाउ नीसासो, ( गाहा )-हवस्स अणवलगस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो // एगे ऊसासनिसासे एग पाणुत्ति पवुच्चइ // 1 // सत्तपाणुणिसेथोवे, सत्तथोवाणिसे लवे // लवाणं सत्तहत्तरिए, एस मुहुत्तेत्ति आहिते // 2 // तिणि व सहस्सा, का उपर का परमाणु अलग हुबे विना नीचे का परमाण अलग नहीं होता है, इसलिये ऊपर का परमाणु अलग हुवा वह काल अलग और नीचे का परमाणु अलग हुवा व: काल अलग. इसलिये है उसे समय नहीं कहनां. अहो शिष्य ! इस काल से भी अत्यन्त सूक्ष्म समय है अर्थात् एक तार तूटे उतने काल में असंख्यात समय व्यातीत हो जाते है. अहो श्रमण आयुष्यमंतो! इस प्रकार के असं-18 - ख्यात समय के समुदाय के समागम से एक आवलिका काल कहा है. संख्यात ( 3737 )आवलिको * का एक उश्वास होता है और संख्यात आवलिका का ही एक निश्वास होता है. यह श्वाशोश्वाप्त उस ही मनुष्य का ग्रहण करना कि जिस मनुष्य का शरीर हृष्टपुष्ट हो ग्लाननि व जरा कर रहित हो, किसी प्रकार के उपद्रव कर रहित ऐसे मनुष्य के श्वासोश्वास को आणपाण कहते हैं. ऐसे 7 आणपाण *8898g- प्रमाण विषय 48488 अर्थ ** For Private and Personal Use Only